उत्तराखंड का लोक पर्व उत्तरायणी (घुघुती त्यौहार )या मकर संक्रांति क्यों मनाया जाता है?
मकर संक्रांति का पर्व हर वर्ष 14 या 15 जनवरी को मनाया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है तब मकर संक्रांति मनाई जाती है इसे उत्तरायणी के नाम से भी मनाया जाता है खगोल शास्त्र के अनुसार देखें तो पृथ्वी का उत्तरी गोलार्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है उस दिन मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है । इस त्यौहार को घुघुती त्योहार इसलिए बोला जाता है क्योंकि इस त्यौहार में घूंघत नाम का एक व्यंजन बनाते हैं। और उसे कौवे को भी देते हैं इसके पीछे एक बहुत बड़ी कहानी भी है जो नीचे व्याख्यान की गई है।
उत्तराखंड के मकर संक्रांति त्योहार को घुघुती त्योहार के रूप में क्यों मनाया जाता है?
इस त्यौहार के संबंध में एक प्रचलित कथा के अनुसार बात उन दिनों की है जब कुमाऊं में चंद वंश का शासन था ।चंद्र वंश का एक राजा था जिसका नाम राजा कल्याण चंद था राजा कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी तो उनका मंत्री यही सोचता था कि राजा के मृत्यु के बाद राज्य मुझे ही मिलेगा एक बार राजा कल्याण चंद बागनाथ मंदिर गए और संतान के लिए प्रार्थना की। भगवान बागनाथ की कृपा से उनका एक बेटा हो गया जिसका नाम निर्भय चंद पड़ा उसकी मां उससे प्यार से घुघुती नाम से बुलाया करती थी और घुघुती की गले में एक मोती की माला थी जिसे वह बहुत प्यार करता था। जब भी घुघुती किसी बात पर जिद करता तो उसकी मां उसकी माला को कौवे के देने की बात करती और कहती
"काले कौवा काले घुघूती माला खा लें"
कौवो को बुलाने पर जब कौवे आ जाते ते तो उन्हें कुछ खाने को दे देती इसी प्रकार धीरे-धीरे घुघूती की दोस्ती कौवे से हो गई।
उधर राजा का मंत्री एक साजिश रच रहा था और उसने घुघूती को जंगल में घेर लिया और मारने लगे वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा तो उतने में का कौवे उधर आ गए एक कौवा घुघूती के गले से हार खींच कर ले गया और उसे महल में ले गया और बाकी कौवे घुघूती को बचाने में मदद करने लगे वह अपनी चोंच से मंत्री को नोचने लगे और जो कवर मोती की माला लेकर महल में पहुंचा था तो उसे देखकर घुघूती मां बहुत ज्यादा घबरा गई । तब राजा ने कौवे को देखा तो कौवा एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर उड़कर चला जाता तो वह समझ गए की कव्वाल हे घुघुती के पास ले जाना चाहता है तो वह से पीछे पीछे चलते रहे और वहां पर पहुंच गए जहां पर मंत्री ने घुघुती को घेरा है। उसके पश्चात उन्होंने घुघुती को महल ले आए और मंत्री को फांसी की सजा दी। तो यह परंपरा के रूप में चलता आ रहा है तो उस दिन से घुघुती त्यौहार भी बोलने लगे।
मकर संक्रांति के त्योहार सूर्योदय से पहले स्नान करने का भी एक अलग महत्व है।
इस त्यौहार में हर कोई सूर्योदय से पहले ही तीर्थ स्थल में स्नान करते हैं क्योंकि लोगों का मानना है मकर संक्रांति के दिन स्नान करने से पुण्य मिलता है एक कहावत भी है कि मकर संक्रांति के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करने पर 100 गायों को दान किए बराबर पुण्य मिलता है।
इस त्यौहार में बच्चों द्वारा गाया जाने वाला एक गीत
काले कौवा काले घुघूती बड़ा खा ले काले कौवा काले
ले कौवा बड़ा मेरे को दे सोने का घड़ा।

👍 nice
जवाब देंहटाएंवो सब ठीक है लेकिन बहुत बेकार लिखा हुआ कुछ समझ नहीं आया
जवाब देंहटाएंमैं आपकी असुविधा के लिए व्यक्तिगत रूप से क्षमा चाहता हूँ। हम अपनी लेखन कार्य में सुधार करने की कोशिश करेंगे ।
हटाएं