उत्तराखंड का लोक पर्व खतड़ुवा त्यौहार असोज मास की कन्या संक्रान्ति के शुभ अवसर पर मनाया जाता है। यह त्योहार उत्तराखंड के पूर्वी आंचल (कुमाऊं) में, एक बड़े पर्वतीय भूभाग में बड़े उल्लास से मनाया जाता है।* इस त्योहार का मुख्य उद्देश्य पशुओं की रक्षा करना है।
उत्तराखंड का लोक पर्व खतड़ुवा क्यों मनाया जाता है ?
उत्तराखंड में लोग प्रकृति से अत्यधिक जुड़े हुए हैं और वे प्रकृति में होने वाले बदलावों को बहुत महत्व देते हैं। इसलिए, जब भी कोई नई ऋतु का आगमन होता है, तो वे इसे एक त्योहार के रूप में मनाते हैं।
खतड़वा पर्व भी शीत ऋतु के आगमन के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।इस पर्व का मुख्य उद्देश्य पशुओं को ठंड तथा बिमारियों से बचना के लिए मनाया जाता है।
कुछ लोककथाओं के अनुसार, खतड़ुवा पर्व चंद राज्य और पंवार राज्य के बीच हुए युद्ध की स्मृति में मनाया जाता है। कहा जाता है कि इस युद्ध में चंद सेनापति गैंडा ने पंवार सेनापति खतड़ुवा को हराया था। हालांकि, इन लोककथाओं का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है।
खतड़ुवा पर्व के बारे में कुछ लोक कथाएँ भी प्रचलित हैं।
* यह त्यौहार ऐतिहासिक विजयोल्लास का प्रतीक है यह त्यौहार चंद राजा लक्ष्मी चंद के काल से परंपरागत रूप से मनाया जाता रहा है। 16वी सदी में जब चंद राज्य एवं पवार राज्य की सेनाओ के बीच 8 बार भयंकर युद्ध हुआ। प्रारंभ के 7 युद्ध में चंद सेना को पराजय का मुख देखना पड़ा परंतु ,8वी बार चंद सेना द्वारा पुनः आक्रमण किया गया इस युद्ध का नेतृत्व चंद सेनापति गौड़ कर रहा था तथा पवार सेनापति खतड़वा हुआ था। चंद सेना को विजय प्राप्त हुई, इस विजय से चंद सेना को प्रचलित मात्रा में धन की प्राप्ति हुई। लगातार 7 बार पराजय के पश्चात 8वी बार प्राप्त हुई ,इस विजय से चंद्र राजा की प्रसन्नता की कोई सीमा नहीं रही । इस विजय की स्मृति में खतड़ुवा त्यौहार की परंपरा रखी गयी । इस लोककथा के इतिहास में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिले हैं।
* एक अन्य कथा के अनुसार, पहले जमाने में जब संचार के साधन नहीं थे, तो लोग ऊँची चोटियों पर आग जलाकर संदेश भेजते थे। अश्विन संक्रांति के दिन ऊँची चोटियों पर आग जलाकर शीत ऋतु की शुरुआत की जाती थी। संभव है कि इसी कथा से प्रेरित होकर खतड़ुवा पर्व की शुरुआत हुई हो।
हालांकि, खतड़ुवा पर्व के वास्तविक उद्देश्य को लेकर विद्वानों में मतभेद है। कुछ विद्वानों का मानना है कि यह त्योहार शीत ऋतु के आगमन के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है, जबकि अन्य विद्वानों का मानना है कि यह त्योहार पशुओं की रोगों से रक्षा की कामना के रूप में मनाया जाता है।
खतड़ुवा पर्व कैसे मनाया जाता है ?
इस दिन गांव में घास, फूस का एक बड़ा सा पुतला बनाया जाता है। बच्चे एक लंबी लकड़ी में गुलपांग के फूल और कूस (घास)बांधकर उसे सजाते है और संपूर्ण गांव में घूमते हैं। जैसे-जैसे शाम होने लगती है लोग अपने घरों से जलते मसाले लेकर सबसे पहले अपने गौशाला में जाते हैं और उस मसाल को गौशाला में घुमा फिरा कर उस मसाल को लेकर खतड़ुवा के पुतले पर जाते है। उसके चारों ओर एकत्रित होते हैं तथा उसमें अग्नि प्रचलित करते हैं ,और भौलो खतड़ुवा भौलो कहकर अपनी प्रसन्नता प्रकट करते हैं। इसके पश्चात प्रत्येक व्यक्ति अपने घर से लाई हुई ककड़ी काटता है तथा वहां पर उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति को बताता है और कुछ उत्साही युवक तो प्रज्वलित अग्नि को भी लांघते हैं । क्योंकि कहा जाता है, कि जो खतरूवा कि आग को कूद के या उसके ऊपर पैर घुमाकर फेरता है, उसे ठंड का मौसम परेशान नही करता है। और यह भी कहा जाता है की खतड़ुवा के जलने के साथ-साथ की पशुओं के समस्त अनिष्ट भस्म हो जाती है ।
