रम्माण उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र का एक प्राचीन धार्मिक पर्व और अनूठा लोक नाट्य है। यह पर्व चमोली जिले के सलूर-डुंगरा नामक दो गांवों में हर साल अप्रैल के आखिर में मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संगठन यूनेस्को ने इसे वर्ष 2009 में मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सूची में शामिल किया है।
ऐतिहासिक महत्व
रम्माण की परंपरा 8वीं शताब्दी से चली आ रही है। माना जाता है कि जब शंकराचार्य गढ़वाल क्षेत्र में आए और बद्रीनाथ मंदिर की स्थापना की गई, तब से वैष्णववाद का प्रचार हुआ और साधु-संत रामकथा का प्रचार करने लगे। वैकल्पिक रूप से, यह भी माना जाता है कि इस पर्व की परंपरा लगभग 500 साल पुरानी है।केंद्रीय देवता
रम्माण का मुख्य केंद्र भूमियाल देवता (Bhumiyal Devta) हैं, जो सलूर-डुंगरा गांव के संरक्षक देवता माने जाते हैं। इस पर्व को मनाने से गांव को सुख, समृद्धि और कृषि उपज में वृद्धि मिलती है, ऐसी मान्यता है।पर्व का समय
रम्माण हर साल अप्रैल के आखिर में मनाया जाता है, आमतौर पर बैसाखी के 9वें या 11वें दिन के बाद। उदाहरण के लिए, 2025 में यह पर्व 30 अप्रैल को मनाया गया था। असली कार्यक्रम एक दिन का होता है, लेकिन इसकी तैयारी कई हफ्तों पहले से शुरू हो जाती है।रम्माण की विशेषताएं
रम्माण की सबसे अनोखी विशेषता मुखौटे पहनकर किया जाने वाला नाट्य प्रदर्शन है। उत्तराखंड का यह एकमात्र पर्व है जहां इस तरह के मुखौटे का उपयोग होता है। कुल 18 लोग भाग लेते हैं जो 18 विभिन्न पात्र अदा करते हैंये 18 मुखौटे पहनते हैं ,18 विभिन्न संगीत ताल पर नृत्य होता है । यह 18 पुराणों और रामायण की 18 कथाओं को दर्शाता है। मुखौटे परंपरागत तरीके से भोजपत्र (हिमालयी बर्च वुड) से हाथ से बनाए जाते हैं और कुशल कारीगरों द्वारा विस्तार से चित्रित किए जाते हैं।
| क्रम | पात्र / मुखौटा | भूमिका / महत्व |
|---|---|---|
| 1 | राम | कथा के नायक, धर्म और वीरता के प्रतीक |
| 2 | लक्ष्मण | राम के भाई, साहस और भक्ति का प्रतीक |
| 3 | सीता | राम की पत्नी, पवित्रता और स्त्रीधर्म की प्रतिमूर्ति |
| 4 | हनुमान | रामभक्त, शक्ति और सेवा का प्रतीक |
| 5 | रावण | लंका का राजा, शक्ति और अहंकार का प्रतीक |
| 6 | भूमियाल देवता | गांव के संरक्षक देवता |
| 7 | नरसिंह मुखौटा | सबसे बड़ा और पवित्र; वजन ~25 किलो; भोजपत्र से निर्मित |
| 8 | मौर्या-मौरिन मुखौटे | चरवाहे दंपति के जीवन, प्रेम और संघर्ष की झांकी |
| 9 | गणेश और कालिका मुखौटे | पूजा की शुरुआत में प्रस्तुत, शुभ आरंभ का प्रतीक |
| 10 | मॉल नृत्य (लाल और सफेद मुखौटा) | गोरखा युद्ध की ऐतिहासिक झलक |
| 11 | कुरजोगी मुखौटा | खेतों की खरपतवार को आशीर्वाद स्वरूप बांटना, कृषि का प्रतीक |
सामूहिक भागीदारी
रम्माण पूरे गांव का सामूहिक पर्व है। गांव के सभी 196 परिवार इसमें शामिल होते हैं। जातिगत भेदभाव के बिना सभी लोग खाना बनाने, नृत्य और गीत गाने में भाग लेते हैं।नाटक की विषय-वस्तु
रम्माण में रामायण के विभिन्न प्रसंग नाट्य रूप में प्रस्तुत किए जाते हैं:• राम और लक्ष्मण का जन्म
• सीता का स्वयंवर
• वनवास
• सोने के हिरण का शिकार
• सीता का अपहरण
• लंका की आग
• राम का राज्याभिषेक
संगीत और नृत्य
रम्माण में परंपरागत ढोल-दमाऊ (स्थानीय ढोल) की थाप पर नृत्य होता है। साथ ही जागर गीत गाए जाते हैं, जो स्थानीय किंवदंतियों और देवताओं की कहानियों को संगीत के साथ प्रस्तुत करते हैं।मुख्य दिवस के अनुष्ठान
सुबह: गणेश पूजा, भूमि शुद्धिकरण की रस्म, और रम्माण स्थल को सजाया जाता है।दोपहर: भूमियाल देवता को रम्माण के मैदान में लाया जाता है और आरती व हवन की जाती है।
शाम: मुखौटा नाटक का प्रदर्शन, लोक नृत्य, जागर गीत और स्थानीय प्रसाद वितरण होता है।
रात: देवता की विदाई का जुलूस और अंतिम आरती के साथ पर्व समाप्त होता है।
सांस्कृतिक महत्व
रम्माण केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि गढ़वाली संस्कृति का एक जीवंत प्रतीक है। यह पर्व पीढ़ियों से चली आ रही परंपराओं, कहानियों और सांस्कृतिक मूल्यों को संरक्षित और प्रचारित करता है। इसके माध्यम से स्थानीय समुदाय की सांस्कृतिक पहचान व्यक्त होती है।#Ramman #UttarakhandCulture #Garhwal #FolkFestival #LokNatya #Ramayana #TraditionalFestival #BhumiyalDevta #CulturalHeritage #IncredibleIndia #UttarakhandTourism
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