उत्तराखंड (अल्मोड़ा) के सल्ट में 5 सितंबर को "शहीद दिवस" (Shaheed Diwas) मनाया जाता है, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों को समर्पित है।
भारत की आजादी की लड़ाई में सल्ट (अल्मोड़ा) के स्वतंत्रता
संग्राम सेनानियों की कुर्बानी को कभी बुलाया नहीं जा सकता है।जब देश में 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन जोरों पर चल रहा था।तब उत्तराखंड के अल्मोड़ा के देघाट,सल्ट व सालम,नामक क्षेत्र इस काल में विशेष चर्चा में रहे। सालम क्षेत्र 1920 के काल से ही आंदोलन में सक्रिय था। आंदोलनकारी मदन मोहन उपाध्याय ने सल्ट देघाट क्षेत्र के ग्रामीणों में भारत छोड़ो आंदोलन की अलग जगायी।
25 अगस्त 1942 को अल्मोड़ा के धामदेव (सालम) के टिले नामक स्थान पर सेना व जनता के बीच पत्थर व गोलियों का युद्ध हुआ। इस संघर्ष में दो प्रमुख नेता टीका सिंह कन्याल व नरसिंह धानक शहीद हो गए।
सलाम की ही भांति 5 सितंबर 1942 में अल्मोड़ा के ही खुमाड़ सल्ट क्षेत्र में एक अन्य महत्वपूर्ण घटना घटित हुई। आंदोलनकारियों द्वारा खुमाड़ में एक जनसभा आयोजित की गई थी। ब्रिटिश सरकार सभा को असफल करने को उतारू थी। ब्रिटिश अधिकारी जॉनसन जब देघाट पहुंचा , तो वहां हो रही एक आंदोलनकारी की सभा में गोलियां चला दी, जिसमें हरिकृष्ण एवं हीरामणि दो आंदोलनकारी शहीद हो गए। जब यह खबर सल्ट कांग्रेस के मुख्यालय खुमाड़ (मौलेखाल)
पहुंची तो जनता उग्र हो गई। तो ब्रिटिश सरकार द्वारा वहां भी गोलियां चलाने का आदेश दे दिया गया। जिसमें दो सगे भाई गंगाराम तथा खीमदेव घटना स्थल पर ही शहीद हो गए। गोलियों से बुरी तरह घायल आन्दोलनकारी चूड़ामणी और बहादुर सिंह की कुछ दिनों बाद मृत्यु हो गयी।
भारत छोड़ो आंदोलन में सल्ट के क्षेत्र के लोगों के योगदान से गांधी जी अति प्रभावित हुए उन्होंने ह इस घटना को "भारत की दूसरी बारदोली" या "कुमाऊं की बारदोली" कहकर क्षेत्र के आंदोलनकारी को सम्मान प्रदान किया।
तब से प्रत्येक वर्ष 5 सितम्बर को खुमाड़ में शहीद स्मृति दिवस मनाते हैं।
