गांधी जयंती पर काला दिन – आखिर क्यों?
2 अक्टूबर को पूरा देश महात्मा गांधी की जयंती मनाता है। गांधी जी अहिंसा और शांति के पुजारी माने जाते हैं। लेकिन यही दिन उत्तराखंड के लिए जख्मों की याद ताजा कर देता है। जहां देशभर में गांधी जी को याद किया जाता है, वहीं उत्तराखंड में इस दिन को “काला दिवस” के रूप में मनाया जाता है।
अब सवाल उठता है – आखिर क्यों? कौन-सी घटना हुई थी 2 अक्टूबर को, जिसे उत्तराखंड आज भी भूल नहीं पाया है?
रामपुर तिराहा कांड – उत्तराखंड आंदोलन का सबसे काला अध्याय
लेकिन रास्ते में आया रामपुर तिराहा (मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश)।
आंदोलनकारी शांतिपूर्वक आगे बढ़ रहे थे। पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की। जब वे नहीं रुके तो पुलिस ने गोलियां चला दीं।
गोलियों से कई आंदोलनकारियों की मौत हो गई।
यहीं तक बात रहती तो भी दर्दनाक था, लेकिन आरोप लगे कि पुलिस और प्रशासन ने महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार और अमानवीय हरकतें भी कीं। यही वजह है कि यह घटना हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में “रामपुर तिराहा कांड” और “उत्तराखंड आंदोलन का काला सच” बनकर दर्ज हो गई।
"काला दिवस" क्यों कहा जाता है?
👉 क्योंकि यह दिन आंदोलनकारियों की शहादत की याद दिलाता है।
👉 क्योंकि यह दिन बताता है कि किस तरह एक शांतिपूर्ण आंदोलन को गोलियों से कुचलने की कोशिश हुई।
👉 क्योंकि यह दिन आज भी न्याय की पुकार बनकर गूंजता है।
हर साल कैसे मनाया जाता है काला दिवस?
धरना और प्रदर्शन – गांधी पार्क जैसे स्थानों पर काली पट्टी बांधकर आंदोलनकारी प्रदर्शन करते हैं।
श्रद्धांजलि सभा – शहीदों को याद किया जाता है, पुष्पांजलि दी जाती है।
न्याय की मांग – अब भी दोषियों को सजा और आंदोलनकारियों को पूरा सम्मान देने की आवाज उठाई जाती है।
आज भी न्याय अधूरा है
रामपुर तिराहा कांड के 30 साल पूरे होने को आए, लेकिन आंदोलनकारी आज भी मानते हैं कि उन्हें पूरा न्याय नहीं मिला। जिन पुलिसकर्मियों पर आरोप लगे, उनमें से कई अब तक बरी हो चुके हैं। यही कारण है कि “काला दिवस” आज भी उतनी ही पीड़ा के साथ मनाया जाता है, जितनी पहली बार मनाया गया था।
रामपुर तिराहा घटना के शहीद
1. स्व. सूर्य प्रकाश थपलियाल – आयु 20 वर्ष – पिता श्री चिंतामणि थपलियाल
2. स्व. राजेश लखेड़ा – आयु 24 वर्ष – पिता श्री दर्शन सिंह लखेड़ा
3. स्व. रविंद्र सिंह रावत – आयु 22 वर्ष – पिता श्री कुंदन सिंह रावत
4. स्व. राजेश नेगी – आयु 20 वर्ष – पिता श्री महावीर सिंह नेगी
5. स्व. संतेंद्र चौहान – आयु 16 वर्ष – पिता श्री जोध सिंह चौहान
6. स्व. गिरीश कुमार भद्री – आयु 21 वर्ष – पिता श्री वाचस्पति भद्री
7. स्व. अशोक कुमार कैशव – आयु उपलब्ध नहीं – पिता श्री शिव प्रसाद कैशव
यद्यपि इस तालिका में केवल उन सात शहीदों के नाम सम्मिलित हैं जिनकी सूची शासन-प्रशासन द्वारा आधिकारिक रूप से जारी की गई थी, किंतु यह सर्वविदित है कि रामपुर तिराहा कांड केवल इन सात व्यक्तियों तक सीमित नहीं था। उस दिन की गोलीबारी और अराजकता में अनेक निर्दोष आंदोलनकारी घायल हुए तथा कई और लोगों ने भी अपना जीवन खोया। उनके नाम और विवरण इतिहास के पन्नों में दर्ज न हो पाए हों, परंतु उनके बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता। वे सभी भी इस संघर्ष के उतने ही महान योद्धा हैं जिन्होंने उत्तराखंड राज्य निर्माण की राह को रक्त से सींचा। इस प्रकार यह घटना केवल एक तालिका तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे समाज की सामूहिक पीड़ा और शहादत का प्रतीक है।
उत्तराखंड राज्य और आंदोलनकारियों का बलिदान
9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड भारत का 27वां राज्य बना। लेकिन यह दिन हमें याद दिलाता है कि इस राज्य के पीछे कितने बलिदान, कितनी आहुतियाँ और कितने संघर्ष छुपे हैं।
अगर रामपुर तिराहा जैसी घटनाएं न हुई होतीं, तो शायद आंदोलन इतना तीव्र न बनता।
2 अक्टूबर को जब पूरा भारत गांधी जी को श्रद्धांजलि देता है, तब उत्तराखंड के लोग “काला दिवस” मनाकर अपने शहीद आंदोलनकारियों को नमन करते हैं। यह दिन सिर्फ दुख की याद नहीं है, बल्कि यह दिन हमें बताता है कि न्याय और अधिकारों के लिए आवाज उठाना कितना जरूरी है।
काला दिवस सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि उत्तराखंड की आत्मा का वह घाव है जो आज भी भर नहीं पाया।
