उत्तराखंड, जिसे देवभूमि के नाम से जाना जाता है, अब साहसिक पर्यटन के शौकीनों के लिए एक नई सौगात लेकर आया है। राज्य के पर्यटन विभाग ने पर्वतारोहण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 15 नई पर्वत चोटियों को खोलने का महत्वपूर्ण प्रस्ताव वन विभाग को भेजा है। इस पहल से न केवल देश-विदेश के पर्वतारोहियों को नए अवसर मिलेंगे, बल्कि स्थानीय स्तर पर भी पर्यटन आधारित आजीविका को बढ़ावा मिलेगा।
तीन जिलों की 15 नई चोटियाँ
यह प्रस्ताव उत्तराखंड के तीन प्रमुख पर्वतीय जिलों – चमोली, पिथौरागढ़ और उत्तरकाशी – में स्थित चोटियों से जुड़ा है। इन चोटियों की ऊँचाई 6,000 मीटर से लेकर 7,000 मीटर से अधिक है, जो पर्वतारोहियों के लिए एक रोमांचक चुनौती पेश करती हैं।
चमोली की चोटियाँ
चमोली जिले की तीन चोटियाँ इस प्रस्ताव में शामिल की गई हैं। ये चोटियाँ अपनी नैसर्गिक सुंदरता और कठिन चढ़ाई के लिए जानी जाती हैं :
नीलगिरि पर्वत – 6,474 मीटर
दुरपटा पर्वत – 6,482 मीटर
त्रिशूली पर्वत – 7,074 मीटर
पिथौरागढ़ की चोटियाँ
पिथौरागढ़ जिला, जो अपनी दुर्गम और ऊँची चोटियों के लिए प्रसिद्ध है, से सर्वाधिक सात चोटियों को खोलने का प्रस्ताव रखा गया है:
ब्रह्मा पर्वत – 6,416 मीटर
चिपेडांग – 6,220 मीटर
संगटांग पीक – 6,480 मीटर
नंदा गोंद पर्वत – 6,315 मीटर
इकुआलरी पर्वत – 6,059 मीटर
नंदा पाल पर्वत – 6,306 मीटर
निताल थोर पर्वत – 6,236 मीटर
उत्तरकाशी की चोटियाँ
उत्तरकाशी, जिसे पर्वतारोहण का गढ़ भी कहा जाता है, की चार चोटियों को इस सूची में शामिल किया गया है:
कोटेश्वर पर्वत – 6,080 मीटर
स्वेतवान पर्वत – 6,340 मीटर
चंद्र पर्वत – 6,739 मीटर
कालिंदी पर्वत – 6,102 मीटर
पर्वतारोहण और पर्यटन को मिलेगा बढ़ावा
इन नई चोटियों के खुलने से उत्तराखंड में साहसिक पर्यटन का एक नया अध्याय शुरू होगा।
राज्य को अंतरराष्ट्रीय पर्वतारोहण मानचित्र पर और भी मजबूत पहचान मिलेगी।
पर्वतारोहण अभियानों की संख्या बढ़ेगी, जिससे स्थानीय गाइड, पोर्टर, होमस्टे और ट्रैवल एजेंसियों को सीधा लाभ होगा।
युवाओं के लिए नए रोजगार और अवसर पैदा होंगे।
पर्यावरण और सुरक्षा पर जोर
वन विभाग को भेजे गए इस प्रस्ताव पर अंतिम निर्णय अभी आना बाकी है। मंजूरी मिलने के बाद इन चोटियों पर चढ़ाई के लिए सुरक्षा मानक और पर्यावरण संरक्षण संबंधी गाइडलाइन तैयार की जाएंगी। सरकार का मानना है कि रोमांच और पर्यटन के साथ-साथ हिमालय की नाज़ुक पारिस्थितिकी की रक्षा करना भी उतना ही आवश्यक है।
उत्तराखंड में 15 नई चोटियों को पर्वतारोहण के लिए खोलने की यह पहल जहाँ एक ओर पर्यटन और रोजगार के नए अवसर लेकर आएगी, वहीं दूसरी ओर कई चुनौतियाँ भी खड़ी करेगी। इससे स्थानीय युवाओं को गाइड, पोर्टर और ट्रेकिंग से जुड़ी सेवाओं में काम मिलेगा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी। इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उत्तराखंड का नाम एडवेंचर टूरिज्म के मानचित्र पर और मजबूत होगा। लेकिन चिंता का विषय यह है कि पर्वतारोहण अभियानों के दौरान प्रदूषण और कचरा प्रबंधन एक बड़ी समस्या बन सकता है। अनुमति की प्रक्रिया और एक सीज़न में कितने पर्वतारोहियों को चढ़ाई की इजाज़त दी जाए, यह तय करना भी बेहद ज़रूरी होगा। ऊँचाई वाले संवेदनशील इलाकों में कैंपिंग और रुकने की व्यवस्था से पर्यावरणीय दबाव बढ़ सकता है, जिससे हिमनद, नदियाँ और स्थानीय पारिस्थितिकी प्रभावित हो सकती हैं। इसके अलावा भूस्खलन, हिमस्खलन और अन्य प्राकृतिक आपदाओं का खतरा भी हर समय मौजूद रहेगा। इसलिए यह ज़रूरी होगा कि पर्वतारोहण की अनुमति देते समय सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण के सख्त नियम बनाए जाएँ, ताकि पर्यटन और प्रकृति के बीच संतुलन बना रहे।