पितृ पक्ष 2025: अपने पूर्वजों को करें याद, पाएं उनका आशीर्वाद



 हिंदू धर्म की परंपराओं में पितृ पक्ष (Pitru Paksha) एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण अवधि है। यह वह समय होता है जब हम अपने पितरों (पूर्वजों) को श्रद्धा, कृतज्ञता और आभार अर्पित करते हैं। शास्त्रों के अनुसार, पितृ पक्ष में हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं और अपने वंशजों से तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध के माध्यम से तृप्त होकर उन्हें आशीर्वाद प्रदान करते हैं। यही कारण है कि इस अवधि को श्राद्ध पक्ष या कनागत भी कहा जाता है।


वर्ष 2025 में पितृ पक्ष रविवार, 7 सितंबर से प्रारंभ होकर रविवार, 21 सितंबर (सर्वपितृ अमावस्या) तक चलेगा। कुल 16 दिनों तक चलने वाले इन पवित्र दिनों में हर व्यक्ति को अपने पितरों का स्मरण कर उन्हें तर्पण, पिंडदान और दान के माध्यम से सम्मान अर्पित करना चाहिए।


पितृ पक्ष का महत्व

गरुड़ पुराण, विष्णु पुराण और महाभारत सहित अनेक ग्रंथों में पितृ पक्ष का विस्तृत वर्णन मिलता है। मान्यता है कि जो व्यक्ति श्रद्धापूर्वक पितरों का श्राद्ध करता है, उसके पितरों की आत्मा तृप्त होकर उन्हें सुख, शांति और समृद्धि का आशीर्वाद देती है।


 विशेष मान्यता :

पितरों की कृपा से परिवार में संतान वृद्धि, धन, अन्न और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
जीवन में आने वाली बाधाएँ और संकट दूर होते हैं।
पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और वे मोक्ष की ओर अग्रसर होते हैं।


उत्तराखंड जैसे पवित्र प्रदेश में, जहाँ गंगा बहती है और हरिद्वार, ऋषिकेश तथा बद्रीनाथ (ब्रह्मकपाल) जैसे सिद्ध तीर्थ हैं, वहाँ श्राद्ध कर्म करना और भी फलदायी माना जाता है। ब्रह्मकपाल पर किया गया पिंडदान गया-श्राद्ध के समान फल देता है।




पितृ पक्ष 2025 की श्राद्ध तिथियाँ (Shraddha Dates 2025)

  • 07 सितम्बर रविवार पूर्णिमा पूर्णिमा श्राद्ध
  • 08 सितम्बर सोमवार प्रतिपदा प्रतिपदा श्राद्ध
  • 09 सितम्बर मंगलवार द्वितीया द्वितीया श्राद्ध
  • 10 सितम्बर बुधवार तृतीया तृतीया श्राद्ध
  • 11 सितम्बर गुरुवार चतुर्थी चतुर्थी/पंचमी श्राद्ध
  • 12 सितम्बर शुक्रवार पंचमी षष्ठी श्राद्ध
  • 13 सितम्बर शनिवार षष्ठी सप्तमी श्राद्ध
  • 14 सितम्बर रविवार अष्टमी अष्टमी श्राद्ध
  • 15 सितम्बर सोमवार नवमी मातृ नवमी (महिला पूर्वजों का श्राद्ध)
  • 16 सितम्बर मंगलवार दशमी दशमी श्राद्ध
  • 17 सितम्बर बुधवार एकादशी एकादशी श्राद्ध
  • 18 सितम्बर गुरुवार द्वादशी द्वादशी श्राद्ध
  • 19 सितम्बर शुक्रवार त्रयोदशी त्रयोदशी श्राद्ध
  • 20 सितम्बर शनिवार चतुर्दशी चतुर्दशी श्राद्ध (अकाल मृत्यु वाले पितरों का)
  • 21 सितम्बर रविवार अमावस्या सर्वपितृ अमावस्या



विशेष तिथियाँ और उनका महत्व

11 सितम्बर (चतुर्थी/पंचमी श्राद्ध): इस वर्ष चतुर्थी तिथि क्षय होने के कारण चतुर्थी और पंचमी दोनों का श्राद्ध एक ही दिन होगा।
भरणी श्राद्ध (11 सितम्बर): इस वर्ष पंचमी श्राद्ध भरणी नक्षत्र में पड़ रहा है। इसे महा भरणी श्राद्ध कहा जाता है, और इसका महत्व गया श्राद्ध के समान है।
मातृ नवमी (15 सितम्बर): यह दिन विशेष रूप से परिवार की महिला पूर्वजों—माता, दादी, नानी और अन्य मातृ शक्तियों—के श्राद्ध के लिए होता है।
घात चतुर्दशी (20 सितम्बर): यह श्राद्ध उन पूर्वजों के लिए किया जाता है जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो, जैसे दुर्घटना, आत्महत्या या हत्या।
सर्वपितृ अमावस्या (21 सितम्बर): पितृ पक्ष का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण दिन। यदि किसी को अपने पूर्वज की मृत्यु तिथि ज्ञात न हो या वह श्राद्ध न कर पाया हो, तो इस दिन सभी ज्ञात-अज्ञात पितरों के लिए श्राद्ध किया जा सकता है।





पितृ पक्ष में क्या करें? ✅

प्रतिदिन सुबह स्नान के बाद तर्पण के रूप में पितरों को जल अर्पित करें।
मृत्यु तिथि पर श्राद्ध कर ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र और दक्षिणा दें।
कौवे, कुत्ते, गाय और चींटियों को भोजन कराएं। इन्हें पितरों का प्रतीक और दूत माना गया है।
धार्मिक ग्रंथों का पाठ करें या भागवत कथा सुनें।
दान-पुण्य करें और जरूरतमंदों की मदद करें।





पितृ पक्ष में क्या न करें? ❌

विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन जैसे मांगलिक कार्य न करें।
नई वस्तुएँ, विशेषकर वाहन, घर या कपड़े न खरीदें।
मांस, मछली, अंडा, प्याज और लहसुन जैसे तामसिक भोजन से बचें।
घर में कलह और विवाद न करें।
अपने बड़ों का अपमान बिल्कुल न करें।

पितृ पक्ष केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का माध्यम है। इस दौरान किया गया श्राद्ध, तर्पण और दान न केवल पितरों की आत्मा को शांति देता है, बल्कि वंशजों के जीवन में भी सुख-समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा लाता है।

tazza Avalokan

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