5 सितंबर सल्ट शहीद दिवस: कुमाऊँ का बारदोली और खुमाड़ के वीर सपूत

 


हर साल 5 सितंबर को उत्तराखंड की पहाड़ियाँ आज़ादी की लड़ाई के उस गौरवशाली अध्याय को याद करती हैं, जिसे इतिहास में सल्ट शहीद दिवस के रूप में जाना जाता है। यह दिन राष्ट्रीय कैलेंडर में दर्ज नहीं है, लेकिन कुमाऊँ क्षेत्र के हृदय में इसका विशेष स्थान है। यह वह दिन है जब अल्मोड़ा जिले के सल्ट क्षेत्र का छोटा सा गाँव खुमाड़ भारत के स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक बन गया।

सल्ट विद्रोह की पृष्ठभूमि

साल 1942 में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की गूंज पूरे देश में थी। पहाड़ों में पहले से ही अंग्रेज़ों के दमनकारी वन कानूनों और भारी कराधान के कारण असंतोष फैला हुआ था। जब गांधीजी ने “करो या मरो” का आह्वान किया, तो सल्ट क्षेत्र के लोग भी इस आंदोलन से जुड़ गए।
यहाँ स्थानीय नेताओं के मार्गदर्शन में ग्रामीण सभाएँ करने लगे, तिरंगे लेकर जुलूस निकालने लगे और ब्रिटिश शासन का खुला विरोध करने लगे।

"देघाट में 19 अगस्त 1942 को हुए गोलीकांड में हरिकृष्ण उप्रेती और हीरामणि बडोला ने अपनी जान की आहुति दी—इस घटना को याद करते हुए देघाट में हर वर्ष शहीद स्मृति दिवस मनाया जाता है।"


5 सितंबर 1942: खुमाड़ गोलीकांड

5 सितंबर को खुमाड़ गाँव में एक बड़ी सभा आयोजित हुई थी। पुरुष, महिलाएँ और युवा – सभी देशभक्ति के जोश से लबरेज़ थे। तभी तत्कालीन ब्रिटिश अधिकारी एस.डी.एम. जॉनसन पुलिस दल के साथ पहुँचा।उसने लोगों को तितर-बितर होने का आदेश दिया।लेकिन भीड़ पीछे हटने को तैयार नहीं थी। नारों और देशभक्ति से बौखलाए जॉनसन ने गोलियाँ चलाने का आदेश दे दिया।

इस गोलीकांड में गंगाराम और खीमदेव तुरंत शहीद हो गए, जबकि चूड़ामणि और बहादुर सिंह घायल होने के बाद कुछ दिनों में शहीद हो गए। खुमाड़ की धरती लाल हो गई, लेकिन ग्रामीणों का साहस और भी प्रबल हो गया।




 कुमाऊँ का बारदोली

जब इस बलिदान की खबर महात्मा गांधी तक पहुँची, तो वे प्रभावित हुए। उन्होंने सल्ट विद्रोह की तुलना गुजरात के 1928 के बारदोली सत्याग्रह से की और सल्ट क्षेत्र को “कुमाऊँ का बारदोली” कहकर सम्मानित किया। यह उपाधि सल्ट के ग्रामीणों के साहस और त्याग का सबसे बड़ा प्रमाण है।


आज खुमाड़ में शहीदों की याद में भव्य स्मारक बना है। हर साल 5 सितंबर को यहाँ श्रद्धांजलि कार्यक्रम, देशभक्ति गीत, भाषण और सांस्कृतिक आयोजन होते हैं।

यह दिन हमें सिखाता है कि : आज़ादी सिर्फ बड़े नेताओं के कारण नहीं, बल्कि गाँव-गाँव के गुमनाम नायकों की कुर्बानी से मिली है। असली साहस ताकत से नहीं, बल्कि सत्य और न्याय के लिए खड़े होने की इच्छाशक्ति से परिभाषित होता है



सल्ट शहीद दिवस सिर्फ इतिहास की घटना नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा है। खुमाड़ के उन वीर सपूतों ने दिखाया कि संगठित होकर साधारण लोग भी साम्राज्य की नींव हिला सकते हैं।


5 सितंबर को जब हम शहीदों को नमन करते हैं, तो यह केवल श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि यह संकल्प भी होता है कि हम उनके आदर्शों को आगे बढ़ाएँगे।


tazza Avalokan

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