नंदा देवी राजजात यात्रा: इतिहास, मार्ग, परंपराएँ और धार्मिक महत्व

 

उत्तराखंड को लोग यूँ ही देवभूमि नहीं कहते। यहाँ की हर घाटी और हर गाँव अपनी अलग परंपरा और आस्था को समेटे हुए है। इन्हीं परंपराओं में से एक है नंदा देवी राजजात यात्रा, जिसे लोग प्यार से "हिमालय का कुंभ" भी कहते हैं। यह यात्रा हर 12 साल में एक बार निकलती है और करीब 280 किलोमीटर लंबी कठिन पैदल यात्रा होती है।


नंदा देवी कौन हैं?

उत्तराखंड की लोककथाओं में नंदा देवी को हिमालय की पुत्री और जनता की कुलदेवी माना जाता है।
कुमाऊँ और गढ़वाल, दोनों जगहों पर इन्हें बेटी की तरह पूजा जाता है। मान्यता है कि नंदा देवी भगवान शिव की अर्धांगिनी पार्वती का ही स्वरूप हैं। यात्रा में उनके साथ लाटू देवता को भी शामिल किया जाता है, जिन्हें देवी का गुरु भाई और रक्षक कहा जाता है।



यात्रा की परंपरा और इतिहास

यह यात्रा सदियों पुरानी है। पहले कुमाऊँ के राजा इस यात्रा की शुरुआत करते थे, बाद में गढ़वाल नरेश ने इसे आगे बढ़ाया। इस यात्रा को देवी की ससुराल विदाई माना जाता है। जैसे किसी बेटी को विदा करते समय पूरा परिवार, गाँव और समाज उसके साथ होता है, वैसे ही नंदा देवी की डोली के साथ हजारों लोग पैदल चलते हैं।



यात्रा का मार्ग

नंदा देवी राजजात यात्रा उत्तराखंड की सबसे कठिन पैदल यात्राओं में गिनी जाती है।
कुल दूरी : लगभग 280 किलोमीटर
समय : 18 से 20 दिन


प्रमुख पड़ाव : कुरूर गाँव – वाण – होमकुंड – रूपकुंड – शिला समुद्र – रूपाली डांडा – चांदनी घाटी – त्रिशूल पर्वत की तलहटी

सबसे दिलचस्प जगह है रूपकुंड झील, जिसे Skeleton Lake भी कहते हैं, क्योंकि यहाँ सदियों पुराने मानव कंकाल पाए जाते हैं।


लोकगीत और परंपराएँ

यह यात्रा सिर्फ एक धार्मिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक उत्सव भी है।
यात्रा के दौरान ढोल-दमाऊं और भजन-जागर लगातार गूंजते रहते हैं।
पुरुष और महिलाएँ पारंपरिक वस्त्र पहनकर झोड़ा और छपेली नृत्य करते हैं।
देवी की डोली और छत्र यात्रा का मुख्य आकर्षण होती है।
भोटिया जनजाति के लोग देवी को ऊनी वस्त्र और भेंट अर्पित करते हैं।




धार्मिक महत्व

श्रद्धालु मानते हैं कि इस यात्रा में शामिल होने से पापों का नाश होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। यह यात्रा हमें प्रकृति और इंसान के बीच के गहरे संबंध का भी एहसास कराती है।



पर्यटन और सांस्कृतिक महत्व

नंदा देवी राजजात यात्रा आज सिर्फ आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उत्तराखंड की पहचान भी बन चुकी है। हजारों श्रद्धालु और पर्यटक इस यात्रा में शामिल होकर हिमालय की संस्कृति और खूबसूरती का अनुभव करते हैं।




नंदा देवी राजजात यात्रा उत्तराखंड की आत्मा को दर्शाती है। यह यात्रा हमें सिखाती है कि विश्वास और परंपरा इंसान को हर कठिनाई से पार करा सकते हैं। नंदा देवी सिर्फ एक देवी नहीं, बल्कि उत्तराखंड की बेटी हैं, जिनकी विदाई यात्रा में पूरा देवभूमि साथ चलता है।

tazza Avalokan

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