उत्तराखंड में रक्षाबंधन और श्रावणी पूर्णिमा: जनेऊ बदलने की पुरातन परंपरा

 

भारतवर्ष में सावन मास की पूर्णिमा का दिन बेहद पावन माना जाता है। इस दिन को हम सामान्यतः रक्षाबंधन के रूप में जानते हैं, लेकिन उत्तराखंड, विशेषकर कुमाऊँ और गढ़वाल अंचल में इसे श्रावणी पूर्णिमा या जन्योपुण्यू हा जाता है। यह परंपरा केवल भाई-बहन के प्रेम तक सीमित नहीं, बल्कि एक गहरी धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा से जुड़ी हुई है — जनेऊ परिवर्तन संस्कार।



जनेऊ पूर्णिमा या जन्योपुण्यू क्या है?

श्रावणी पूर्णिमा के दिन उत्तराखंड में ब्राह्मण समाज के लोग पुरानी जनेऊ (पवित्र यज्ञोपवीत) को विधिपूर्वक उतारकर नई जनेऊ धारण करते हैं। इस प्रक्रिया को उत्तराखंड की स्थानीय भाषा में जन्म्योपुण्यू कहा जाता है — जिसका अर्थ है "जनेऊ पहनने का पर्व"।
यह परंपरा बताती है कि यह दिन केवल भाई-बहन के बंधन का उत्सव नहीं है, बल्कि एक आध्यात्मिक शुद्धि और संस्कारों के नवीकरण का भी पर्व है।



रक्षाबंधन और श्रावणी में अंतर

हालांकि समय के साथ रक्षाबंधन और जन्योपुण्यू एक ही दिन मनाए जाने लगे हैं, लेकिन इन दोनों पर्वों की जड़ें अलग-अलग हैं।
रक्षाबंधन का संबंध मुख्यतः बहन द्वारा भाई को राखी बाँधने और उसकी दीर्घायु की कामना से है।
वहीं श्रावणी पूर्णिमा का मूलतः संबंध ब्राह्मणों के लिए विशेष धार्मिक अनुष्ठान, जनेऊ परिवर्तन, और सप्तऋषि पूजन से है।

पुराने समय में समाज चार वर्णों में विभाजित था — ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। हर वर्ण का अपना विशेष पर्व और कर्मकांड होता था। श्रावणी पूर्णिमा ब्राह्मणों का मुख्य पर्व माना जाता था।



जनेऊ परिवर्तन की विधि
श्रावणी पूर्णिमा की सुबह विशेष विधियों के साथ शुरुआत होती है:
1. शारीरिक शुद्धि का लेप:
लोग नदी, नौला (झरना) या तुलसी के पास की मिट्टी और गाय के गोबर को मिलाकर शरीर पर लेप करते हैं। यह लेप शारीरिक और आध्यात्मिक शुद्धि के लिए किया जाता है।

2. पुरानी जनेऊ का विसर्जन:
इसके बाद पुरानी जनेऊ को उतारकर शुद्ध जल में विसर्जित किया जाता है।

3. नई जनेऊ धारण:
शास्त्रों के अनुसार मंत्रोच्चारण के साथ नई जनेऊ धारण की जाती है। यह ब्राह्मणों के लिए नवजीवन के आरंभ का प्रतीक है।

4. सप्तऋषि पूजन:
नई जनेऊ पहनने के बाद सप्तऋषियों की पूजा की जाती है, जो ज्ञान और धर्म के प्रतीक माने जाते हैं।

5. रक्षा सूत्र बंधन:
इसके पश्चात कलाइयों में रक्षा-सूत्र बाँधा जाता है। यह राखी, भाई-बहन की राखी से अलग एक धार्मिक रक्षा सूत्र होता है, जो गुरु द्वारा शिष्य को, ब्राह्मण द्वारा यजमान को, और परस्पर एक-दूसरे को बाँधा जाता है।

6. भोजन व दक्षिणा:
पूजा के बाद ब्राह्मणों को विशेष भोजन व दक्षिणा दी जाती है।




उपनयन संस्कार और वैदिक परंपरा

वैदिक काल में एक विशेष संस्कार होता था — उपनयन संस्कार।
यह वह संस्कार होता था जब बालक 8 वर्ष की उम्र के बाद अपनी माँ की देखरेख से हटकर पिता की देखरेख और गुरुकुल जीवन की ओर बढ़ता था।
पिता अपने पुत्र को किसी योग्य गुरु के पास भेजते थे।
गुरुकुल में जाने से पहले उसे यज्ञोपवीत (जनेऊ) पहनाया जाता था।
जनेऊ पहनकर जब वह बालक गुरु के पास शिक्षा के लिए जाता, तब इसे उपनयन कहा जाता — जिसका अर्थ है “गुरु के निकट ले जाना”।

इस संस्कार के साथ ही विद्यार्थी जीवन की शुरुआत होती थी।



उत्तराखंड में जन्योपुण्यू का सामाजिक महत्व

उत्तराखंड के कई गाँवों में आज भी यह परंपरा सामूहिक रूप से मनाई जाती है। गाँव के सभी ब्राह्मण परिवार मंदिर या नदी किनारे एकत्र होकर सामूहिक जनेऊ परिवर्तन करते हैं, पूजा होती है और फिर सामूहिक भोज भी रखा जाता है।
बच्चों के लिए यह संस्कार धार्मिक अनुशासन की पहली सीढ़ी मानी जाती है, वहीं बड़े लोगों के लिए यह आत्मचिंतन, आत्मशुद्धि और धर्म की पुनर्पुष्टि का अवसर होता है।


रक्षाबंधन: राखी का सामाजिक और ऐतिहासिक महत्व

कुछ रिश्ते जन्मजात होते हैं, लेकिन रक्षाबंधन ऐसा पर्व है जो रक्षा के व्रत से एक अजनबी को भी भाई बना देता है।
जब कोई स्त्री किसी पुरुष को राखी बाँधकर अपना भाई मानती है, तो पुरुष का कर्तव्य बनता है कि वह उसके सम्मान, आत्मसम्मान और सुरक्षा की जिम्मेदारी उठाए।
इतिहास में रानी कर्णावती ने हुमायूं को राखी भेजकर अपने राज्य की रक्षा का अनुरोध किया था, और हुमायूं ने इसे भाईधर्म मानकर सेना भेजी थी।



पौराणिक कथा: इन्द्र और इन्द्राणी

पुराणों के अनुसार एक बार देवताओं और असुरों के बीच भीषण युद्ध हुआ।
इन्द्र जब हारने लगे तो उनकी पत्नी इन्द्राणी ने मंत्रों से पूजित रक्षा-सूत्र (राखी) उनके हाथ में बाँधा, जिससे इन्द्र को विजय प्राप्त हुई।
यह दिन श्रावणी पूर्णिमा ही थी, और तभी से इस दिन रक्षा-सूत्र बाँधने की परंपरा शुरू हुई।



राखी: शक्ति, विजय और प्रेम का प्रतीक

राखी केवल धागा नहीं, यह एक ऐसा शक्ति-कवच है जो बहन के स्नेह, आशीर्वाद और भरोसे से बना होता है।
इस धागे को धन, शक्ति, विजय, और रक्षा का प्रतीक माना जाता है।
ऐसा विश्वास है कि जो व्यक्ति इस दिन विधिपूर्वक राखी धारण करता है, वह पूरे वर्ष स्वस्थ,सुरक्षित और सफल रहता है।









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