उत्तराखंड की खूबसूरत वादियों में प्रकृति और संस्कृति का गहरा संगम देखने को मिलता है। यहां के हर त्योहार में प्रकृति के प्रति आभार और लोक परंपराओं का अद्भुत मिश्रण होता है। ऐसा ही एक खास पर्व है - घी संक्रांति, जिसे स्थानीय भाषा में घी त्यार, घ्यू त्यार या ओल्गिया के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व हर साल भाद्रपद महीने की पहली तिथि को मनाया जाता है, जब सूर्य सिंह राशि में प्रवेश करते हैं। इसलिए इसे सिंह संक्रांति भी कहते हैं।
घी संक्रांति क्यों मनाई जाती है?
घी संक्रांति का यह पर्व मुख्य रूप से किसानों और पशुपालकों द्वारा मनाया जाता है। यह त्योहार अच्छी फसल और पशुधन के स्वास्थ्य के लिए प्रकृति और ईश्वर का आभार व्यक्त करने का एक तरीका है। इस समय तक, बारिश के मौसम में खेत खलिहान हरे-भरे हो जाते हैं और गायें पौष्टिक घास खाकर सेहतमंद होती हैं। इसी से प्राप्त होने वाला घी अत्यंत गुणकारी होता है, जिसे इस दिन विशेष रूप से सेवन किया जाता है।
घी संक्रांति का महत्व और मान्यताएं
घी संक्रांति का सबसे बड़ा महत्व इसके स्वास्थ्य और कृषि से जुड़े होने में निहित है। इस दिन घी का सेवन करना बहुत शुभ माना जाता है। इसके पीछे एक रोचक मान्यता है:
घोघा बनने की मान्यता :
उत्तराखंड में एक पुरानी कहावत है कि जो व्यक्ति घी संक्रांति के दिन घी नहीं खाता, उसे अगले जन्म में घोंघा (गनेल) बनना पड़ता है। यह मान्यता दरअसल घी के महत्व को दर्शाती है कि घी शारीरिक ऊर्जा और रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए कितना जरूरी है। घोंघा आलसी और सुस्त होता है, और घी न खाने वाला व्यक्ति भी उसी तरह आलसी बन सकता है।
स्वास्थ्य का प्रतीक :
घी, आयुर्वेद में एक महत्वपूर्ण औषधि माना गया है। यह वात और पित्त दोष को शांत करता है, शरीर को ऊर्जा देता है और बुद्धि को बढ़ाता है। इस दिन शुद्ध गाय के घी का सेवन करने से पूरे साल व्यक्ति निरोगी और स्वस्थ रहता है।
फसलों की सुरक्षा :
यह पर्व फसलों की सुरक्षा और समृद्धि के लिए भी मनाया जाता है। किसान अपने खेतों में घी का दीपक जलाकर भगवान से अच्छी फसल के लिए प्रार्थना करते हैं।
घी संक्रांति कैसे मनाते हैं?
यह त्योहार कई पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है:
पारंपरिक पकवान: इस दिन हर घर में खास पकवान बनाए जाते हैं, जिसमें घी का भरपूर इस्तेमाल होता है। सबसे खास होता है बेड़ू रोटी या बेड़वा रोटी, जिसे उड़द की दाल से भरकर बनाया जाता है और इसे घी या मक्खन के साथ खाया जाता है।
ओलग की परंपरा :
इस दिन ओलग देने का रिवाज है। ओलग का मतलब होता है भेंट या उपहार। पुराने समय में किसान और शिल्पकार अपने भूस्वामियों और आश्रयदाताओं को अपने हाथों से बनी वस्तुएं या खेतों में उगी सब्जियां भेंट करते थे। जैसे, लोहार- दराती, बढ़ई- लकड़ी के खिलौने, और किसान- खेतों से प्राप्त ताजी सब्जियां, फल और घी-मक्खन भेंट करते थे।
बच्चों का घी से अभिषेक :
इस दिन माताएं अपने बच्चों के सिर पर ताजा घी मलती हैं, जिससे उनकी बुद्धि तेज हो और वे स्वस्थ रहें। यह घी के औषधीय गुणों को दर्शाता है।
पूजा और दान :
घी संक्रांति के दिन सूर्य देव, भगवान विष्णु और भगवान नरसिंह की पूजा की जाती है। पवित्र नदियों में स्नान करने और दान-पुण्य का भी विशेष महत्व है।
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