उत्तराखंड में सशक्त भू कानून को मिली मंजूरी || #uttaralhandbhookanoon || bhookanoon

 उत्तराखंड में सख्त भू-कानून: संस्कृति, संसाधन और स्थानीय हितों की रक्षा का ऐतिहासिक कदम**  


उत्तराखंड, जिसे "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, ने 19 फरवरी 2025 को एक ऐतिहासिक भू-कानून को मंजूरी दी है। यह कानून राज्य की पहाड़ी संस्कृति, प्राकृतिक संसाधनों और स्थानीय निवासियों के अधिकारों को बचाने के लिए लाया गया है। धामी सरकार के इस फैसले ने लंबे समय से चल रहे आंदोलनों और मांगों को एक दिशा दी है, जिसमें बाहरी लोगों द्वारा भूमि की अंधाधुंध खरीद पर रोक लगाने का प्रावधान शामिल है ।  


** भू-कानून की पृष्ठभूमि और आवश्यकता **  


1. ** राज्य निर्माण और शुरुआती चुनौतियाँ **  
  उत्तराखंड के गठन (2000) के बाद से ही यहाँ के लोगों को डर था कि बाहरी लोग और भू-माफिया राज्य की जमीन और संस्कृति पर कब्जा कर लेंगे। इसके बावजूद, 2003 तक उत्तर प्रदेश के कानून ही लागू थे, जिनमें भूमि खरीद पर कोई सख्त प्रतिबंध नहीं था ।  
  2003 में एनडी तिवारी सरकार ने पहली बार बाहरी लोगों के लिए आवासीय भूमि खरीद की सीमा 500 वर्गमीटर तय की, लेकिन 2018 में त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए इन प्रतिबंधों को ढीला कर दिया, जिससे समस्याएँ बढ़ीं ।  

2. ** जन आंदोलन और मांगें **  
   2023 से ही #उत्तराखंड_मांगे_भू_कानून हैशटैग के साथ सोशल मीडिया पर आंदोलन तेज हुआ। देहरादून में 24 दिसंबर 2023 को विशाल प्रदर्शन हुआ, जिसमें सशक्त भू-कानून और मूल निवास प्रमाण पत्र की मांग उठाई गई ।  
  हिमाचल प्रदेश के तर्ज पर भू-कानून (जहाँ बाहरी लोग कृषि भूमि नहीं खरीद सकते) को आदर्श मानते हुए उत्तराखंड के लोगों ने समान प्रावधानों की माँग की ।  
 

** नए भू-कानून के मुख्य प्रावधान **   


1. ** बाहरी लोगों पर प्रतिबंध **  
   हरिद्वार और उधम सिंह नगर को छोड़कर शेष 11 जिलों में बाहरी व्यक्ति कृषि और बागवानी भूमि नहीं खरीद सकेंगे।  
   विशेष उद्देश्य (जैसे उद्योग, पर्यटन) के लिए जमीन खरीदने हेतु सरकारी अनुमति अनिवार्य।  
   जमीन खरीदते समय शपथ पत्र देना होगा, और नियमों का उल्लंघन होने पर जमीन सरकारी नियंत्रण में ली जाएगी।  


2. ** तकनीकी और प्रशासनिक सुधार **  
  जमीन खरीद के लिए एक केंद्रीय पोर्टल बनाया जाएगा, जहाँ हर लेन-देन का रिकॉर्ड रखा जाएगा।  
  2018 के संशोधनों को निरस्त कर दिया गया, जिसमें उद्योगों को जमीन खरीदने में छूट दी गई थी।  


3. ** स्थानीय हितों का संरक्षण **  
 पहाड़ी क्षेत्रों में चकबंदी और बंदोबस्ती की प्रक्रिया तेज की जाएगी।  
 नगर निकाय क्षेत्रों में भूमि का उपयोग पूर्वनिर्धारित नियमों के अनुसार ही होगा।  

** क्यों जरूरी था यह कानून ? **  


1. ** संस्कृति और पहचान की रक्षा **  
  बाहरी लोगों द्वारा होटल, रिसॉर्ट और कॉर्पोरेट प्रोजेक्ट्स के लिए भूमि खरीदने से स्थानीय संस्कृति और जनसांख्यिकीय संतुलन प्रभावित हो रहा था। उदाहरण के लिए, केदारनाथ और बद्रीनाथ जैसे धार्मिक स्थलों के आसपास की जमीनें बड़े पैमाने पर बिक चुकी हैं ।  
2. ** पर्यावरणीय संकट **  
   अनियंत्रित निर्माण से जंगलों का कटाव, भूस्खलन और जलस्रोतों का दोहन बढ़ा। पर्यावरणविद अनिल जोशी के अनुसार, यह कानून जलवायु और जैव विविधता को बचाने में मदद करेगा ।  
3. ** आर्थिक असंतुलन **  
  स्थानीय किसान और ग्रामीण भूमिहीन हो रहे थे, क्योंकि बाहरी लोग सस्ते दामों में जमीन खरीदकर बड़े प्रोजेक्ट्स शुरू कर देते थे ।  

 ** चुनौतियाँ और भविष्य की राह **  


 ** कानूनी पेचीदगियाँ ** : पुराने भूमि लेन-देन और अवैध कब्जों को हटाने में प्रशासनिक अड़चनें आ सकती हैं।  
** आर्थिक दबाव ** : उद्योगों का विरोध संभव है, क्योंकि 2018 के संशोधनों को हटाने से निवेश प्रभावित हो सकता है ।  
 ** जनभागीदारी ** : सरकार ने बुद्धिजीवियों और स्थानीय निवासियों से सुझाव लेकर इस कानून को बनाया है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में पारदर्शिता जरूरी है ।  


उत्तराखंड का यह नया भू-कानून न केवल राज्य की पहचान बचाने का प्रयास है, बल्कि यह पर्यावरण और स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए एक सुरक्षा कवच भी है। हालाँकि, इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि सरकार इसे कितने प्रभावी ढंग से लागू करती है और भविष्य में होने वाले राजनीतिक-आर्थिक दबावों का सामना कैसे करती है। जैसा कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा, _"यह कानून राज्य के संसाधनों और संस्कृति की रक्षा के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का प्रतीक है" ।

tazza Avalokan

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