*उत्तराखंड में कैग रिपोर्ट का बड़ा खुलासा: वन संरक्षण के फंड से आईफोन खरीदने से लेकर एक्सपायर्ड दवाओं तक!**

 *उत्तराखंड में कैग रिपोर्ट का बड़ा खुलासा: वन संरक्षण के फंड से आईफोन खरीदने से लेकर एक्सपायर्ड दवाओं तक!**  


प्राकृतिक सौंदर्य और वन संपदा के लिए प्रसिद्ध उत्तराखंड अब एक वित्तीय अनियमितता के घोटाले में घिर गया है। राज्य विधानसभा में पेश की गई नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट ने सरकारी विभागों में धन के दुरुपयोग, नियमों की धज्जियाँ उड़ाने और जनस्वास्थ्य से जुड़ी लापरवाहियों का चौंकाने वाला खेल उजागर किया है। आइए, जानते हैं कैसे वन संरक्षण के नाम पर जुटाए गए करोड़ों रुपये आईफोन और ऑफिस की शान बढ़ाने में उड़ाए गए, और क्यों सरकारी अस्पतालों में मरीजों को एक्सपायर्ड दवाएं दी जा रही थीं!



1. वन संरक्षण का पैसा, आईफोन और 'सजावट' में गायब!
कैग रिपोर्ट के मुताबिक, **CAMPA फंड** (Compensatory Afforestation Fund) जैसे महत्वपूर्ण संसाधनों का इस्तेमाल वनीकरण के बजाय **आईफोन खरीदने**, ऑफिस को सजाने और अनाधिकृत खर्चों में किया गया। 56.97 लाख रुपये का फंड, जो वन विभाग के टैक्स भुगतान के लिए था, गलत तरीके से दूसरे प्रोजेक्ट्स में डायवर्ट किया गया। अल्मोड़ा के डीएफओ कार्यालय ने बिना मंजूरी के सोलर फेंसिंग पर 13.51 लाख रुपये खर्च कर दिए।  
हैरानी की बात यह कि 37 मामलों में CAMPA फंड का इस्तेमाल करने में  8 साल तक की देरी हुई, जबकि नियमानुसार इसे 1 साल में खर्च करना होता है।  
वृक्षारोपण का हश्र:
2017 से 2022 के बीच लगाए गए पेड़ों में से केवल 33% ही जीवित बचे हैं, जबकि वन अनुसंधान संस्थानों ने 60-65% सर्वाइवल रेट का लक्ष्य रखा था। यानी, करोड़ों रुपये की योजना का असर जमीन पर नहीं दिखा!

 2. डॉक्टरों की कमी, एक्सपायर्ड दवाएं: स्वास्थ्य सेवाओं पर सवाल कैग ने स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही को भी रेखांकित किया:  तीन सरकारी अस्पतालों में 34 एक्सपायर्ड दवाएं मिलीं, जिनमें से कुछ की एक्सपायरी डेट डेढ़-दो साल पहले ही समाप्त हो चुकी थी। यह मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ जैसा है!  
सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की भारी कमी: पहाड़ी इलाकों में 70% और मैदानी क्षेत्रों में 50% पद खाली पड़े हैं।  
लॉकडाउन नियमों का उल्लंघन करने वाले 250 डॉक्टरों को बिना कार्रवाई के काम पर बनाए रखा गया।  

3. नियमों की अनदेखी: सड़क से लेकर रेलवे तक 2017 से 2022 के बीच 52 मामलों में सड़क, रेलवे और पानी की लाइन बिछाने जैसे प्रोजेक्ट्स पर काम करने के लिए डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर (DFO)की अनिवार्य मंजूरी नहीं ली गई। यह पर्यावरण संरक्षण के नियमों की खुली अवहेलना है।  

राजनीतिक भूचाल: कांग्रेस vs सरकार कैग रिपोर्ट ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है। कांग्रेस ने सरकार पर "जनता के पैसे की बर्बादी" और "भ्रष्टाचार" का आरोप लगाते हुए इस्तीफे की मांग की है।  

वन मंत्री सुबोध उनियाल ने दावा किया कि विभाग ने जांच के आदेश दे दिए हैं, लेकिन विपक्ष इसे "ढोंग" बता रहा है।  
सवाल जवाब से बचती सरकार ?

रिपोर्ट के बाद कई सवाल उभर रहे हैं:  
1. क्या वन विभाग में फंड का दुरुपयोग करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई होगी?  
2. एक्सपायर्ड दवाओं की जिम्मेदारी किस पर है? क्या स्वास्थ्य अधिकारी नींद में थे?  
3. पहाड़ों में डॉक्टरों की कमी को दूर करने के लिए सरकार की क्या रणनीति है?  

निष्कर्ष: 'हरित राज्य' की छवि को धक्का  
उत्तराखंड, जो अपनी 'हरित भविष्य' की छवि बेचता है, उसके वन विभाग की यह हकीकत चिंताजनक है। अगर पर्यावरण संरक्षण के फंड ही गैरजिम्मेदार हाथों में पहुंचेंगे, तो जंगल और पहाड़ कैसे बचेंगे? साथ ही, स्वास्थ्य सेवाओं की यह स्थिति राज्य के विकास के दावों पर सवाल खड़े करती है। जनता का पैसा जनता तक पहुंचे, यह सुनिश्चित करना सरकार की पहली जिम्मेदारी होनी चाहिए।  

सवाल_उत्तराखंड_से: क्या इस रिपोर्ट के बाद सिस्टम में सुधार होगा, या फिर यह 'रिपोर्ट-कबाड़' के ढेर में दफन हो जाएगी?

tazza Avalokan

एक टिप्पणी भेजें

और नया पुराने