गोलू देवता: न्याय के देवता की जागर और कथा //golu-devta-jagar-kumaon

 

गोलू देवता: न्याय के देवता की जागर और कथा


गोलू देवता, जिन्हें ग्वेल देवता के नाम से भी जाना जाता है, उत्तराखंड के कुमाऊँ क्षेत्र के सबसे पूजनीय और प्रभावशाली देवताओं में से एक हैं। उन्हें न्याय का देवता और शीघ्र सुनवाई करने वाला माना जाता है। जब कहीं और से न्याय की उम्मीद नहीं दिखती, तब लोग गोलू देवता की शरण में आते हैं। उनकी आराधना केवल मंदिरों तक सीमित नहीं है, बल्कि जागर जैसी लोक परंपराओं के माध्यम से वे जनमानस के हृदय में बसते हैं।


गोलू देवता कौन हैं? - एक पौराणिक परिचय


गोलू देवता के प्राकट्य और उनके जीवन से जुड़ी कई लोककथाएँ प्रचलित हैं। सबसे लोकप्रिय मान्यता के अनुसार, उन्हें चंपावत के राजा झालराई के पुत्र के रूप में जाना जाता है। कुछ कथाएँ उन्हें भगवान शिव का अवतार या उनका अंश मानती हैं।

* जनम कथा: एक प्रचलित कथा के अनुसार, राजा झालराई को कोई संतान नहीं थी। भगवान शिव की आराधना के बाद, उनकी रानी का नाम कलिंका था, उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, जिसका नाम गोलू रखा गया। गोलू बचपन से ही बहुत तेजस्वी और न्यायप्रिय थे।
 

* न्याय प्रियता: उनकी न्याय प्रियता के कई किस्से प्रचलित हैं। कहा जाता है कि एक बार उन्होंने अपनी सौतेली माँ के षड्यंत्र का पर्दाफाश किया था, जहाँ एक धोबी के पत्थर को उन्होंने बच्चा बना दिया था। इस घटना से उनकी न्यायप्रियता की धाक जम गई।
 

* देवत्व प्राप्त करना: कुछ किंवदंतियों के अनुसार, उन्हें धोखे से सरयू नदी में डुबो दिया गया था, लेकिन अपने दिव्य शक्तियों से वे वहाँ से जीवित निकल आए और बाद में देवत्व प्राप्त किया।

जागर: गोलू देवता को बुलाने की लोक परंपरा

जागर उत्तराखंड की एक अनूठी और प्राचीन लोकगायन शैली है, जिसके माध्यम से स्थानीय देवी-देवताओं का आवाहन किया जाता है। गोलू देवता की जागर का विशेष महत्व है:

 * वाद्य यंत्रों की ध्वनि: जागर गायन में डमरू, थाली, और हुड़का जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्रों का उपयोग होता है। इनकी ध्वनि एक विशेष लय और कंपन पैदा करती है, जिसे देवताओं को आमंत्रित करने का माध्यम माना जाता है।
 

* अवतरण (आने वाला): जागर के दौरान, विशेष गायन और वाद्य यंत्रों की ध्वनि से एक पश्वा (जिसे अवतारी या ध्यानी भी कहते हैं) पर देवता का अवतरण होता है। पश्वा के माध्यम से देवता अपने भक्तों की समस्याओं को सुनते हैं और उन्हें न्याय का आश्वासन देते हैं। पश्वा एक माध्यम होता है जिसके द्वारा देवता अपने भक्तों से संवाद करते हैं, उनकी समस्याओं का निवारण करते हैं, और भविष्यवाणियाँ भी करते हैं।

 * भाव और भक्ति: जागर सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह गहरी आस्था, भक्ति और लोक संस्कृति का प्रतीक है। इसमें भक्तों की भावनाओं और उनकी परेशानियों को उजागर किया जाता है।

न्याय पाने का माध्यम: पत्र और मन्नत

गोलू देवता के प्रति लोगों की आस्था इतनी गहरी है कि वे उन्हें न्याय की आखिरी उम्मीद मानते हैं।
 

* पत्र लेखन: यह गोलू देवता से न्याय माँगने का एक अनोखा और सबसे लोकप्रिय तरीका है। लोग अपनी शिकायतें, दुख और न्याय की गुहार एक कागज़ पर लिखकर गोलू देवता के मंदिरों में चढ़ाते हैं। इन पत्रों को मंदिर में बने विशेष बॉक्स में डाला जाता है या मंदिर की दीवारों पर टाँग दिया जाता है।
 

* सच्चे मन की शक्ति: मान्यता है कि यदि पत्र सच्चे मन और पूर्ण विश्वास के साथ लिखा जाए, तो गोलू देवता उसकी सुनवाई अवश्य करते हैं। कई लोग अपनी समस्याओं के समाधान के बाद वापस आकर देवता का आभार व्यक्त करते हैं।
 

* घंटी चढ़ाना: न्याय मिलने पर, भक्त अक्सर मंदिर में पीतल की घंटियाँ चढ़ाते हैं। आप देख सकते हैं कि गोलू देवता के मंदिर (जैसे घोड़ाखाल और चितई) सैकड़ों-हजारों घंटियों से भरे पड़े हैं, जो भक्तों की अटूट आस्था और मिले हुए न्याय का प्रतीक हैं।
 

* लोकमान्यता और विश्वास: यह परंपरा दर्शाती है कि कैसे लोकदेवता आज भी लोगों के जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, विशेषकर जब कानूनी या सामाजिक प्रक्रियाएँ न्याय दिलाने में असमर्थ लगती हैं।

प्रमुख मंदिर: जहाँ गोलू देवता विराजते हैं

उत्तराखंड में गोलू देवता के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
 

* चितई गोलू देवता मंदिर (अल्मोड़ा): यह सबसे प्रसिद्ध और पूजनीय मंदिरों में से एक है। यहाँ देश-विदेश से लोग अपनी फरियाद लेकर आते हैं।
 

* घोड़ाखाल गोलू देवता मंदिर (नैनीताल): यह मंदिर भी बहुत लोकप्रिय है, और यहाँ भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
 

* चंपावत गोलू देवता मंदिर: यह मंदिर उनके जन्म स्थान से जुड़ा हुआ माना जाता है।

गोलू देवता का प्रभाव केवल कुमाऊँ तक ही सीमित नहीं है, बल्कि गढ़वाल और नेपाल के कुछ हिस्सों में भी उनकी पूजा की जाती है। वह केवल एक देवता नहीं, बल्कि विश्वास, न्याय और लोक परंपरा के जीवंत प्रतीक हैं।

आप अपने अगले भाग में उनके अन्य पहलुओं, जैसे उनके विभिन्न रूपों, उनके मंदिरों के इतिहास, या न्याय प्राप्त करने के बाद की परंपराओं पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।




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